भारतीय जीवन और दर्शन >> अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचित अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचितसुबोधचन्द्र पंत
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काव्यों में नाटक सुन्दर माने जाते हैं; नाटकों में अभिज्ञान शाकुन्तल सबसे श्रेष्ठ है शाकुन्तल में भी चौथा अंक और उस अंक में भी चार शलोक अनुपम हैं। एक अनुभवी और विद्वान आलोचक के इस कथन के बाद अभिज्ञान शाकुन्तल के बारे में और क्या कहा जा सकता है! भारत की गौरवशाली और समृद्ध परम्परा, सांस्कृतिक वैभव, प्रकृति के साथ मानवीय अंतरंगता, यहां तक कि वन्य जीवों के साथ भी बन्धुत्व की भावना-इन सबका महाकवि कालिदास ने इस नाटक में जैसा वर्णन किया है, वह वास्तव में अनुपम है।
ॐ श्री गणेशाय नमः
भूमिका
संस्कृत साहित्य में कालिदास का स्थान अप्रतिम है। कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के 'नवरत्नों' में से एक थे। प्राचीन कालीन सम्राटों का मन्त्रिमण्डल उनका रत्नमण्डल कहलाता था। उस समय मन्त्रियों की गणना रत्नों के समान की जाती थी। विक्रमादित्य के नवरत्नों में कौन अधिक तेजवान, ओजस्वी और वर्चस्वी था यह कह पाना कठिन है। जिस प्रकार कालिदास का संस्कृत-साहित्य में अप्रतिम स्थान है उसी प्रकार विक्रमादित्य के मन्त्रिमण्डल में भी उनका स्थान अप्रतिम था।
कालिदास की कथा-कृतियों के बारे में संस्कृत-साहित्य में बहुत कुछ कहा गया है। कालिदास की कृतियों से परिचित होने के लिए हम उनका उल्लेख करना परम आवश्यक मानते हैं। संस्कृत के विद्वानों में यह श्लोक प्रसिद्ध है-
काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्यं शकुन्तला।
तत्रापि च चतुर्थोऽङ्कस्तत्र श्लोक चतुष्टयम्।।
इसका अर्थ है-काव्य के जितने भी प्रकार हैं उनमें नाटक विशेष सुन्दर होता है। नाटकों में भी काव्य-सौन्दर्य की दृष्टि से अभिज्ञान शाकुन्तलम् का नाम सबसे ऊपर है। अभिज्ञान शाकुन्तलम् में भी उसका चतुर्थ अंक और इस अंक में भी चौथा श्लोक तो बहुत ही रमणीय है।
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